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दोहे (अष्टावक्र-जनक-संवाद)1

*दोहे*(अष्टावक्र-जनक-संवाद)1
पूछे अष्टावक्र से,नृप अति वृद्ध विदेह।
ज्ञान-मुक्ति-वैराग्य का,पाएँ कैसे नेह??

विषय-भोग विष इव तजें,अमिय क्षमा-संतोष।
बोले अष्टावक्र दे,मुक्ति-ज्ञान का कोष ।।

अवनि-अनल-पावक-पवन,वपु-निर्माणक-तत्त्व।
आत्मा बस चैतन्य जग,मुक्ति-मार्ग शुचि-सत्व।।

वपु से होकर पृथक ही,यदि चेतन-विश्राम।
मुक्ति-शांति निश्चित मिले,मन को भी आराम।।

वर्ण-भाव से हो विलग,आश्रम से अति दूर।
निराकार-निर्लिप्त मन,देता सुख भरपूर।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

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5 Comments

Gunjan Kamal

20-Feb-2024 02:37 PM

👏🏻👌🏻

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Mohammed urooj khan

19-Feb-2024 11:47 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

18-Feb-2024 10:26 PM

Nice

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